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ना सोचे जाने वाले महत्त्वपूर्ण व ज़रूरी बात I
प्रकृति ने एक खूुबसूरत रचना किया और उस अनमोल रचना की कीमत हमने कागज के कुछ टुकड़ो से कर डाला। उस समय यह नहीं सोचा कि जिस कागज के टुकडे को हम निर्धारित कर रहें हैं आगे चलकर वही कागज का टुकडा हमें, हमारे जीवन को व हमारी हर जरुरतो को निर्धारित करेगा। और आज वही कागज का टुकड़ा किसी के खुशियों और अनमोल जीवन तथा रिश्तांे-नातों से बढ़कर हो गया है। यही कागज का टुकड़ा ही निर्धारित करने लगा है कि कौन छोटा है कौन बड़ा है, कौन सही है कौन गलत है, कौन साह है कौन चोर है, कौन अच्छा है कौन बुरा है, कौन अपना है कौन पराया है, कौन सफल है कौन असफल है, कौन सा ईश्वर अच्छा है कौन सा नही है, किस ईश्वर की पूजा करनी चाहिए किसकी नहीं। सन् 1947 में 1 डाॅलर 1 रुपया के बराबर था किन्तु यदि हमारे देश का अन्तर्राष्ट्रिय स्तर पर विकास हो रहा है तो आज सन् 2019 में 1 डाॅलर 70 रुपये के बराबर क्यों पहुँच गया। यानि हर साल डाॅलर के अगेंस्ट रुपये की कीमत 1 रुपया घटती जा रही है। यदि इसी दर से रुपये की कीमत घटती रही तो आने वाले 100 सालो में 1 डाॅलर 200 रुपये के बराबर हो जाएगा। और तब भी हम कहेंगे कि हम विकास कर रहें हैं। जब तक हम इन्कम और रोजगार की तलाश में भटकते रहेंगे तब तक न हम सफल हैं और न ही हमारा और हमारे देश का विकास हो रहा है। इसका मुख्य कारण हमारी कार्यकुशलता में पूरी तरह से निपुण न होना है। अर्थात जो काम हम करने जा रहें हैं यदि उसमें हम पूरी तरह से निपुण नहीं हैं तब तक हम उस काम में सफलता नहीं पा सकतें है और न ही हमारा और हमारे देश का विकास हो सकता है। कच्ची मिट्टी को यदि सिर्फ आकार दे दिया जाये तो भी उसकी कोई कीमत नहीं होती है और यदि कच्ची मिट्टी को सिर्फ पका दिया जाये तो भी उसकी कोई कीमत नहीं होती है किन्तु यदि कच्ची मिट्टी को सही आकार दे कर अच्छी तरह से पका दिया जाये तो उसकी कीमत काफी बढ़ जाती है। प्रायः हर छात्र की लाइफ ऐसी ही होती है। कोई ेएजुकेशन सिस्टम किसी छात्र को सही आकार देता है तो उसे पका नहीं पाता और कोई पकाने की कोशिश करता है तो सही आकार नही दे पाता है। हम पूरी कोशिश करेंगे कि हर छात्र के साथ उपरोक्त दोनों प्रकार की घटनाएं घटित हों ताकि हर छात्र के ज्ञान की कीमत हो जिसके बेसिस पर वह सफलता प्राप्त करे। और अपने आप में रोजगार परक हांे। और अपना व अपने देश का विकास भी करे। आइये हम मिलकर एक ऐसे सिस्टम को बनाएं जिससे छात्रों के अन्दर टैलेंट को निखार कर कार्यकुशलता में निपुण बनाएं और उन्हें सफल बनाएं।
उत्तर-प्रदेश में टेस्ट सीरीज की जरुरत क्यों है ?
शिक्षा सुधार में लगभग सभी प्रकार के स्तम्भ लोगो ने गाड़ दिये हैं। शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए यू पी बोर्ड को एन सी ई आर टी पैटर्न में तथा नंबर सिस्टम को ग्रेड सिस्टम में बदल दिया गया, फिर भी आज बड़े व अच्छे कम्पटीशन की सफलता में यू पी बोर्ड के बच्चे दूर-दूर तक दिखाई नही देते हैं, कभी आपने सुना है कि यू पी बोर्ड का बच्चा JEE - MAIN, JEE - ADVANCE, UPSEE, OLYMPIAD, NEET आदि प्रवेश परीक्षाओ में प्रथम स्थान प्राप्त किया है ?... नहींीं कारण अभी तक हमने अधिकतम जोर साक्षरता: पर दिया न कि टैलेंट: पर। जहाँ कम्पटीशन जितनी ही ज्यादा होती है, पढ़ाई वहां उतनी ही बेहतर होती है परिणामस्वरूप उत्तर प्रदेश के कुछ ही शहरों में बेहतर पढ़ाई होती है और अन्य शहरो से छात्र वहां पढ़ने जाते हैं क्योंकि वहां कम्पटीशन का माहौल अपेक्षाकृत बहुत ज्यादा है। इस मिशन से पूरे उत्तर प्रदेश के गांव-गांव में कम्पटीशन का माहौल बनेगा और शिक्षा की विषमतायें धीरे-धीरे खत्म होंगी। हमारे यू पी बोर्ड के बच्चों का कम्पटीशन पढ़ाई के दौरान सिर्फ उनके विद्यालय व कोचिंग सेंटर के क्लाॅस तक ही सीमित रहता है जिसकी वजह से उनकी पढ़ाई भी उसी क्लाॅस के लेवल में ही रह जाती है किन्तु यदि पढ़ाई के दौरान उनके कम्पटीशन का स्तर बढ़ाकर अन्य विद्यालयों, शहरो व राज्य के जिलों से कर दिये जायें तो उनकी पढ़ाई भी बड़े स्तर पे होने लगेगी और बच्चो के अंदर प्रतिभा का निखार होने लगेगा तथा हमारा प्रदेश बेरोजगारिता को पीछे करते हुए आपने पैरों पे खड़ा होता हुआ नज़र आएगा। अतः आप सभी से अनुरोध है कि इस बदलाव कार्य में हमारा सहयोग करें।
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ना सोचे जाने वाले महत्त्वपूर्ण व ज़रूरी बात I
ृति्रकृति ने एक खूुबसूरत रचना किया और उस अनमोल रचना की कहमन हमने कागज के कुछ टुकड़ो से कर डाला। ि समय यह नहीं जिस क क क क क क ड ड ड ड ड नि नि नि ध क क क क क क क क ं ं क क क क हम ी हम ो ो ो ो ो औ क आज क क क क-----खुशियों खुशियों औ------------------ यही कागज का टुकड़ा ही निर्धारित करने लगा है कि कौन छोटा है कौन बड़ा है, कौन सही है कौन गलत है, कौन साह है कौन चोर है, कौन अच्छा है कौन बुरा है, कौन अपना है कौन पराया है, कौन है सफल कौन असफल है, कौन सा ईश्वर अच्छा है कौन सा नही है, किस ईश्वर की पूजा करनी चाहिए किसकी नहीं। 19् 1947 में 1 डाॅलर 1 रुपया के बराबर था किन्तु यदि हमारे देश का अन्तर्राष्ट्रिय स वि प वि वि स 201 201 201 201 201 201 201 201 201 201 201. यानि हर साल डाॅलर के अगेंस्ट रुपये की कीमत क 1 रुपया घटती जा रही है। यदि इसी द स स 100 100 100 100 100 100 100 100 100 100 100 100 100 100 100 100 100 ं ं ं ं ं 1 200 200 ं 200 200 200 200 200 200 200 200 200 200 200 200 200 और तब भी हम कहेंगे कि हम विकास कर रहें हैं। जब तक हम इन्कम और रोजगार की तलाश में भटकते रहेंगे तब तक न न सफल औ न न न न हम र र र र हम क क क क ह ह ह इसका मुख्य कारण हमारी कार्यकुशलता में पूरी तरह से निपुण न होना है। अ थ थ त क म क क स स ं ं ं क क क क क क क क क क क क क कच्ची मिट्टी को यदि सिर्फ आकार दे दिया जाये तो भी उसकी कोई कीमत नहीं होती है और यदि कच्ची मिट्टी को सिर्फ पका दिया जाये तो भी उसकी कोई कीमत नहीं होती है किन्तु यदि कच्ची मिट्टी को सही आकार दे कर अच्छी तरह से पका दिया जाये तो उसकी कीमत काफी बढ़ जाती है। प्रायः हर छात्र की लाइफ ऐसी ही होती है। कोई ेएजुकेशन सिस्टम किसी छात्र को सही आकार देता है तो उसे पका नहीं पाता और कोई पकाने की कोशिश करता है तो द र र र हम पू ी ी ी र र ि ि ि ि र छ छ छ र र र र र र ि ि त त त त त त ि ि ि ि ि छ छ छ ी ी ी छ छ छ त त छ छ र र र र और अपने आप में रोजगार परक हांे। और अपना व अपने देश का विकास भी करे। आइये हम मिलकर एक ऐसे सिस्टम को बनाएं जिससा तात्रों के अन्दर टैलेंट को निखार कर कार्यकुशलता में निपुण बनाउन और उनाएं।
-्तर-प्रदेश में टेस्ट सीरीज की जरुरत क्यों है?
शिक्षा सुधार में लगभग सभी प्पकार के स्तम्भ लोगो ने गाड़ दिये हैं। शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए यू पी बोर्ड को एन सी ई आर टी पैटर्न में तथा नंबर सिस्टम को ग्रेड सिस्टम में बदल दिया गया, फिर भी आज बड़े व अच्छे कम्पटीशन की सफलता में यू पी बोर्ड के बच्चे दूर-दूर तक दिखाई नही देते हैं, कभी आपने सुना है कि यू पी बोर्ड का बच्चा JEE - MAIN, JEE - ADVANCE, UPSEE, OLYMPIAD, NEET आदि प्रवेश परीक्षाओ में प्रथम स्थान प्राप्त किया है ... नहींीं कारण अभी तक हमने अधिकतम जोर साक्षरता:? पर दिया न कि टैलें : पर. जहाँ कम्पटीशन जितनी ही ज्यादा होती है, पढ़ाई वहां उतनी ही बेहतर होती है परिणामस्वरूप उत्तर प्रदेश के कुछ ही शहरों में बेहतर पढ़ाई होती है और अन्य शहरो से छात्र वहां पढ़ने जाते हैं क्योंकि वहां कम्पटीशन का माहौल अपेक्षाकृत बहुत ज्यादा है. इस मिशन स पू पू उत पू पू प द प ंव ंव ंव ंव ंव ंव ंव ंव ंव ंव ंव ंव ष ष ष ष ष ष ष ष ष ष ष ष ष ष ष ष ष ष ष हमारे यू पी बोर्ड के बच्चों का कम्पटीशन पढ़ाई के दौरान सिर्फ उनके विद्यालय व कोचिंग सेंटर के क्लाॅस तक ही सीमित रहता है जिसकी वजह से उनकी पढ़ाई भी उसी क्लाॅस के लेवल में ही रह जाती है किन्तु यदि पढ़ाई के दौरान उनके कम्पटीशन का स्तर बढ़ाकर अन्य लयों्यालयों, शहरो व राज्य के जिलों से कर दिये जायें तो उनकी पढ़ाई बड़ से स्तर पे होनेबच और और और क्प ा प होन क क क क देश बेरोजगारिता को पीछे करते हुए आपने पैरों पे खड़ा होता हुआ नज़र आएगा. अतः आप सभी स अनु अनु अनु ोध ि ि ि ि ि ि ि ि ि ि ि ि ि ि ि ि ं ं ं क क क क क क

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