ब्रह्मचर्य के दो अर्थ होते हैं। जो ज़्यादातर लोग जानते हैं वो ये होता है कि संभोग(सेक्स) नहीं करना और ये बड़ी तुच्छ बात है। तुमने तो ब्रह्म को बिल्कुल लंगोटे से बांध दिया है। ब्रह्म को क्या पड़ी है कि तुम सेक्स कर रहे हो या नहीं।
ब्रह्म का वास्तविक अर्थ है, ब्रह्म में आचरण करना। और ब्रह्म माने बंटा-बंटा नहीं रहना, पूरा रहना। ब्रह्म का मतलब है, जो कुछ हो सकते हो, पूरे तरीके से हो जाओ, छोटे नहीं रह जाओ।
‘ब्रह्म’ शब्द आया है ‘वृहद’ से, ‘वृहद’ माने विस्तार, बड़ा होना। ब्रह्मचर्य समझ लो अहंकार से मुक्ति है। आज़ादी ही ब्रह्मचर्य है। अतीत और भविष्य से मुक्ति ब्रह्मचर्य है, दूसरों के प्रभावों से मुक्ति ब्रह्मचर्य है।
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1.ब्रह्मचर्य विज्ञानं के नियम और उनकी वैज्ञानिक विश्लेषण
2.स्त्री-पुरुष के परस्पर विरुद्ध ध्रुवों का संयोजन
3.सब प्रकार के मैथुन के त्याग का नाम ही ब्रह्मचर्य विज्ञानं है
4.ब्रह्मचर्य रक्षा के उपाय
5.व्रतों में श्रेष्ठ ब्रह्मचर्य योग
6.ब्रह्मचर्य का रहस्य
7.ब्रह्मचर्य जीवन जीने के उपाय
8.ब्रह्मचर्य व्रत का पालन
9.स्वप्नदोष का निवारण
10.ब्रह्मचर्य शक्ति बढ़ने के घरेलू उपाय
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1.ब्रह्मचर्य विज्ञानं के नियम और उनकी वैज्ञानिक विश्लेषण
2.स्त्री-पुरुष के परस्पर विरुद्ध ध्रुवों का संयोजन
3.सब प्रकार के मैथुन के त्याग का नाम ही ब्रह्मचर्य विज्ञानं है
4.ब्रह्मचर्य रक्षा के उपाय
5.व्रतों में श्रेष्ठ ब्रह्मचर्य योग
6.ब्रह्मचर्य का रहस्य
7.ब्रह्मचर्य जीवन जीने के उपाय
8.ब्रह्मचर्य व्रत का पालन
9.स्वप्नदोष का निवारण
10.ब्रह्मचर्य शक्ति बढ़ने के घरेलू उपाय