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पवनचक्की वह मशीन है जो हवा के बहाव की उर्जा लेकर विद्युत उर्जा उत्पन्न करती है। यह हवा के रैखिक गति को पंखों की घूर्णीय गति में बदल देती है। इससे पवन तर्बाइन चलाकर विद्युत पैदा की जा सकती है या सीधे पीसने, पल्प बनाने एवं अन्य यांत्रिक कार्य किये जा सकते हैं।
धरती की सतह पर वायु का प्रत्यक्ष प्रभाव भूमिक्षरण, वनस्पति की विशेषता, विभिन्न संरचनाओं में क्षति तथा जल के स्तर पर तरंग उत्पादन के रूप में परिलक्षित होता है। पृथ्वी के उच्च स्तरों पर हवाई यातयात, रैकेट तथा अनेक अन्य कारकों पर वायु का प्रत्यक्ष प्रभाव उत्पन्न होता है। प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से वायु की गति से बादल का निर्माण एवं परिवहन, वर्षा और ताप इत्यादि पर स्पष्ट प्रभाव उत्पन्न होता है। वायु के वेग से प्राप्त बल को पवनशक्ति कहा जाता है तथा इस शक्ति का प्रयोग यांत्रिक शक्ति के रूप में किया जाता है। संसार के अनेक भागों में पवनशक्ति का प्रयोग बिजली उत्पादन में, आटे की चक्की चलाने में, पानी खींचने में तथा अनेक अन्य उद्योगों में होता है।
पवनशक्ति की ऊर्जा गतिज ऊर्जा होती है। वायु के वेग से बहुत परिवर्तन होता रहता है अत: कभी तो वायु की गति अत्यंत मंद होती है और कभी वायु के वेग में तीव्रता आ जाती है। अत: जिस हवा चक्की को वायु के अपेक्षाकृत कम वेग की शक्ति से कार्य के लिए बनाया जाता है वह अधिक वायु वेग की व्यवस्था में ठीक ढंग से कार्य नहीं करता है। इसी प्रकार तीव्र वेग के वायु को कार्य में परिणत करनेवाली हवाचक्की को वायु के मंद वेग से काम में नहीं लाया जा सकता है। सामान्यत: यदि वायु की गति 320 किमी प्रति घंटा से कम होती है तो इस वायुशक्ति को सुविधापूर्वक हवाचक्की में कार्य में परिणत करना अव्यावहारिक होता है। इसी प्रकार यदि वायु की गति 48 किमी प्रति घंटा से अधिक होती है तो इस वायु शक्ति के ऊर्जा को हवाचक्की में कार्य रूप में परिणत करना अत्यंत कठिन होता है। परंतु वायु की गति सभी ऋतुओं में तथा सभी समय इस सीमा के भीतर नहीं रहती है इसलिए इसके प्रयोग पर न तो निर्भर रहा जा सकता है और न इसका अधिक प्रचार ही हो सकता है। उपर्युक्त कठिनाईयों के होते हुए भी अनेक देशों में पवनशक्ति के व्यावसायिक विकास पर बहुत ध्यान दिया गया है।
पवन चक्कियों का इतिहास
पवन ऊर्जा के उपयोग की अवधारणा का विकास ई. पू. ४००० तक पुराना है, जब प्राचीन मिस्त्र निवासी नील नदी में अपनी नावों को चलाने के लिए पाल का प्रयोग करते थे | पवन चक्कियों तथा पनचक्कियों ने सबसे पहले शक्ति के स्त्रोत के रूप में पशु शक्ति का स्थान लिया | ७ वीं शताब्दी के अरब लेखकों ने ई. ६४४ में फारस में मीलों का सन्दर्भ दिया है | ये मिलें साइन्स्ता में स्थित थीं, जो फारस (इरान) व अफगानिस्तान की सीमा पर है |